ग़ज़ल
क्या से क्या हुए थे क्या से क्या हो गए।
नभ में उड़ने वाले मिट्टी में खो गए।
निरंतर चलने से ही मिलती है मंज़िल,
राहों में रहते, जो राहों में सो गए।
छोटे-छोटे सूरज की फुनगियां फूटीं,
माली बीज धरा में कुछ एैसे बो गए।
तुम गए हो तो इस दिल पे क्या बीती,
शीशा जो टूटा टुकड़े-टुकड़े हो गए।
तेरी आमद पे हैं जो खुशियों के आंसू,
ज़ख़्मों में उतरी सारी पीढ़ा धो गए।
बालम ग़ज़ल खिली तो गुलशन महके,
दिलकश मौसम फूलों के हार पिरो गए।
— बलविंदर बालम