गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

तुम अनुभूति हो प्रेम का मै टकरार हूं।
तुम सफर हो इश्क का मै इकरार हूं।।

जला दो प्रेम दीप लौ बुझने न पाये।
तुम प्रेम की अनुभूति मैं साकार हूं।।

नफरतो के इस वियाबान शहर में।
प्रेम दीप जलाओ तुम मैं बेकरार हूं।।

सबकी धड़कनो में हो रौब इसका।
तुम हाथ उठाओ मै भी ललकार हूं।।

कदम कदम पे हो साथ तेरा मेरा।
तुम माथे का तिलक मै उपहार हूं।।

टूटे न कभी ये डोर जिन्दगी की।
पुष्प हो तुम मेरे मै गले का हार हूं।।

— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

पता- 15a राधापुरम् गूबा गार्डन कल्याणपुर कानपुर

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