‘फिर नहीं ललकारा’ : बाल कहानी
बैडी सियार को इन दिनों पहलवानी का शौक चढ़ा था। उसने अच्छी-खासी रकम देकर जंबों हाथी से पहलवान के गुर भी सीख लिए थे। जंबों हाथी ने एक दिन बैडी सियार से कहा-‘‘अब तुम अच्छे पहलवान बन गए हो। मैंने तुम्हें खास और बड़े सभी दांवपेंच सीखा दिए हैं। मुझे नहीं लगता कि कोई तुम्हें आसानी से पटकनी दे सकता है।’’
बैडी खुश होते हुए बोला-‘‘तो उस्ताद इसका मतलब ये हुआ कि मैं चंपकवन का नामी पहलवान बन गया हूं न?’’
जंबों हाथी बोला-‘‘तुमने लगन से कुश्ती के सभी गुर सीख लिए हैं। हां अभ्यास करना और विपक्षी को खुद पर हावी मत होने देना। यदि तुम ऐसा कर सके तो तुम्हें कोई नहीं हरा सकता। मैं भी नहीं।’’ बैडी मारे खुशी के उछल पड़ा। बोला-‘‘वाह उस्ताद वाह ! बस उस्ताद एक बार मैं ज़रा चंपकवन के सभी तीसमारखांओं को पटक दूं। फिर आपको आपकी गुरु दक्षिणा भी दूंगा।’’
जंबो हाथी ने मुस्कराते हुए कहा-‘‘अपने उस्ताद को भूलना नहीं। मिलते रहना।’’
बैडी चंपकवन की ओर चल पड़ा। बैडी को चंपकवन में कोई भी मिलता, वह उसे ललकारता। जो भी उससे उलझता, वह उससे कुश्ती कर बैठता। पूरे जोश के साथ वह सामने वाले पर टूट पड़ता और जंबो हाथी के सिखाए एक से बढ़कर एक दांवपेंच अमल में लाता। सामने वाला कुछ ही क्षण में पस्त हो जाता और हार मान जाता। कुछ ही दिन में बैडी चंपकवन में पहलवानी के लिए पहचाना जाने लगा। जंपी बंदर, ब्लैकी भालू, मटकू गधा, रीठू बैल तक को वह पहलवानी में पछाड़ चुका था। चंपकवन के वासी उसे पहलवानजी कहकर पुकारने लगे थे।
एक दिन की बात है। टाॅमी कुत्ता बोला-‘‘पहलवानजी। चंपकवन में कोई है जो आपको ललकार सके। नहीं है कोई।’’
बैडी तैश में आते हुए बोला-‘‘किसी में इतनी हिम्मत कहां है, जो मुझे ललकार सके। अरे ! मेरे उस्ताद तक ने कह दिया था कि अब मुझे वो यानि मेरा उस्ताद भी नहीं हरा सकता। समझे तुम।’’
आस-पास मौजूद कई जानवरों को बैडी सियार का ये बड़बोलापन अच्छा नहीं लगा। मगर सब चुप रहे। पेड़ पर बैठी सैकी गिलहरी ने कह ही दिया-‘‘पहलवान जी। लगता है शेर को सवा शेर नहीं मिला है अभी।’’ बैडी सियार की आंख पर तो पहलवानी की पट्टी बंधी थी। वह सैकी गिलहरी का इशारा नहीं समझ पाया।
एक दिन की बात है। बैडी सियार सैकी गिलहरी को खोज रहा था। जंपी बंदर ने पूछ ही लिया-‘‘पहलवान जी। क्या बात है बड़े गुस्से में हो? किसे खोज रहे हो?’’ बैडी सियार पैर पटकते हुए बोला-‘‘हां। मेरा पारा सातवें आसमान पर है। मैं सैकी को खोज रहा हूं। कहां है वो। उसने मुझे ललकारा है। पिद्दी भर की है और उसने मुझे कुश्ती के लिए ललकारा है। मैं उसका खून पी जाऊंगा।’’
देखते ही देखते चंपकवन के कई जानवर चौपाल पर इकट्ठा हो गए। तभी सैकी गिलहरी ने पेड़ से बैडी के शरीर पर छलांग लगाई। बैडी घबरा गया। इससे पहले वो कुछ समझ पाता। सैकी गिलहरी ने बैडी के बदन पर कई जगह काट खाया। अपने नुकील पंजों से उसने बैड़ी की गरदन पकड़ ली। बैडी जोर-जोर से खांसने लगा। दूसरे ही क्षण सैकी गिलहरी ने बैडी सियार की पूंछ मरोड़ दी। बैडी सुबह से सैकी को खोजता हुआ यहां-वहां मारा-मारा घूम रहा था। वह
भूखा-प्यासा और थका हुआ था। अचानक सैकी को सामने देखकर उसे कुछ नहीं सूझा। जंबो हाथी को सामने देखकर वह सारे दांव पेंच भूल गया।
कुछ ही देर में वह सैकी के दांव के सामने असहाय नजर आने लगा। जंबो हाथी ने ताली बजाते हुए कहा-‘‘कुश्ती खत्म। सैकी ने बैडी को मात दे दी है। कुश्ती का नियम है कि जब विपक्षी असहाय हो जाए तो कुश्ती रोक दी जाती है। सैकी छोड़ दो बैडी को, तुम जीत गई।’’
बैडी एक तरफ खड़ा हो गया। वहीं सैकी को दर्शकों ने कंधे पर बिठा लिया। वह सैकी का विजय जुलूस चंपकवन की ओर चला गया। बैडी ने जंबो हाथी से कहा-‘‘उस्ताद जी। आपने तो कहा था कि मैं सारे दांव-पेंच सीख गया हूं फिर सैकी ने कौन से दांव से मुझे हरा दिया?’’
जंबो हाथी ने बताया-‘‘बैडी। सैकी का दांव बड़ा ही साधारण था। तुम अपने घमण्ड के चलते हारे हो। सैकी को तुमने हल्के ढंग से लिया था, और तुम उसे सुबह से खोज रहे थे। तुम अपना धैर्य खो चुके थे। यही कारण था कि तुम कुश्ती शुरू होने से पहले ही हार गए। सामने वाले को तुमने पहले ही बेहद कमजोर मान लिया। वह तुम पर हावी हो गई और तुम सैकी गिलहरी की एक ही पटखनी में चित्त हो गए। याद रखो। सूरज के सामने दिये की रोशनी कुछ भी नहीं होती। लेकिन रात के अंधेरे में वही रोशनी बेहद उपयोगी होती है।’’
बेचारा बैडी अपना सा मुंह लेकर रह गया। फिर कभी उसने किसी को ललकारने की कोशिश नहीं की।
-मनोहर चमोली ‘मनु’
बढ़िया शिक्षाप्रद कहानी !
ji AABHAAR.