सामाजिक

कुछ हिन्दुओं की दकियानूसी सोच 

मेरे घर कल एक सहायक (Maid) कार्य करने आई। वह गुमला, झारखण्ड की रहने वाली है। मैंने उसे अपने घर पर हवन करते समय उसे भी हवन पर साथ बैठने को कहा। पहले वह कुछ हिचकी फिर बैठ गई। मैंने हवन के पश्चात उससे हिचकते का कारण पूछा। उसने बताया की उनके गाँव में वह एक बार स्थानीय शिव मंदिर में खाली समय में शिव की पूजा हेतु चली गई थी। जैसे ही पूजा समाप्त कर बाहर निकलने लगी तो देखा की मंदिर का पूजारी उसकी ओर तेजी से चलता हुआ आ रहा है। पूजारी ने भद्दी भाषा में पहले जातिसूचक गालियां दी फिर मंदिर को अपवित्र करने का दोष लगाया, फिर आगे से मंदिर में प्रवेश किया तो टांग तोड़ने की धमकी दी और अंत में मंदिर को जल से धो कर पवित्र किया। उसने बताया की इस घटना के पश्चात से वे लोग कभी मंदिर नहीं जाते।
मेरे मन में एक ही विचार तब से कोंध रहा है की आज “घर वापसी” को लेकर बड़ी हलचल है। मगर घर वापसी समाज के उन सदस्यों की होती है जिसे अछूत या दलित समझा जाता है, जिसके साथ छुआछूत का व्यवहार होता है, जिस समाज के बच्चों को विद्यालय में मिड दे मील में स्टील की बजाय मिटटी के बर्तनों में अलग से भोजन दिया जाता है, जिसके बच्चों को दक्षिण भारत में शीशे के गिलास की बजाय नारियल के कसोरो में चाय परोसी जाती है। जिस समाज के घरों में पुरोहित संस्कार करवाना पसंद नहीं करते। जिस समाज को मंदिरों में प्रवेश कर स्वर्ण हिन्दुओं के समान पूजा करने पर पाबन्दी है। जिसे उचित शिक्षा, नौकरी एवं साधन की बड़े पैमाने पर कमी है एवं नशा, बेरोजगारी, मांसाहार आदि का प्रचलन है।
भाई घर वापसी तो उनकी होगी जो घर से जा चूके है मगर जिन्हें आप घर से निकालने के लिए अपना जोर लगा रहे है उनका क्या?
हिन्दुओं की छुआछूत कि इस दकियानूसी सोच को जब तक बदला नहीं जायेगा तब तक घर वापसी के मनोवांछित परिणाम नहीं निकलेंगे। जातिवाद हिन्दू समाज का सबसे बड़ा शत्रु है। हिन्दू समाज को संगठित करने के लिए जातिवाद उनर्मूलन ही एक मात्र विकल्प है।
नववर्ष 2015 में हिन्दू समाज को संगठित करने एवं जातिवाद उन्मूलन का संकल्प लीजिये।
डॉ विवेक आर्य

 

4 thoughts on “कुछ हिन्दुओं की दकियानूसी सोच 

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विवेक जी , आप को सलाम करना बनता है , किओंकि यही बात मैं भी बार बार दुहराता रहता हूँ. धर्म कोई भी बुरा नहीं , बुरे हैं वोह लोग जिन की गलत धारणाओं से धर्म सुक्ड़ता जा रहा है . अक्सर हम बहुत बातें करते हैं कि इस्लाम ने तलवार के जोर से हिन्दुओं को मुस्लिम बनाया लेकिन यह कोई भी बात करने तियार नहीं कि दलित भी हिन्दू ही हैं और उनको भी मंदिरों में बराबर के हकूक चाहिए . यही वजा है कि दलित लोग ब्राह्मणवाद से दुखी हो कर इसाई मुसलमान और बुद्धिस्ट हुए जा रहे हैं . यह जो अन्पड पुजारी हैं , इन की जगह पड़े लिखे और कुआलिफ़ाइद पुजारी होने चाहियें जिन को प्रॉपर ट्रेनिंग दी गई हो . इंग्लैण्ड में भी ज़िआदा तर लो कास्ट के लोग क्रिस्चियन बन गए हैं और कुछ तो मुस्लिम समाज में शादीआं करके मुसलमान बन रहे हैं लेकिन ब्राह्मण वर्ग समझता ही नहीं . इस यह घर वापसी एक पाखण्ड ही है किओंकि अगर कोई घर वापिस आ भी जाए तो किया कोई ब्राह्मण अपने बेटे या बेटी की शादी उन लोगों से करानी चाहेगा ?

  • महेश कुमार माटा

    सही मुद्दा उठाया है। जो लोग दुसरो को नीचा दिखाने के लिए धर्म की आड़ लेते हैं वो इंसान नही बहुत बड़े नकाबपोश हैं और धर्म को बदनाम करते हैं। क्योंकि अगर यह छोटा बड़ा उंच नीच की बाते धर्म दिखता है तो वो धर्म ही नही।और सच कहूँ तो हमारे समाज में पंडिताई प्रथा ही इस समस्या की मूल जड़ है। इसी कारण आज की नई पढ़ी लिखी पीढ़ी जो ब्राह्मण परिवार से सम्बन्ध रखते हैं वो इन् आडम्बरों से खुद को अलग रखते हैं

  • Man Mohan Kumar Arya

    अति उत्तम, प्रशंसनीय एवं सराहनीय। आँखे खोलने वाली प्रेरणादायक रचना। इसके लिए लेखक महोदय जी को बधाई।

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लिखा है आपने. ऐसे पण्डे-पुजारी ही हिन्दू धर्म के वास्तविक दुश्मन हैं. विधर्मियों ने हिन्दू धर्म को इतनी हानि नहीं पहुंचाई जितनी इन पोंगा-पंडितों ने पहुंचाई है. इसी कारण मुझे मंदिरों मठों से वितृष्णा हो गयी है.
    जब तक हिन्दू समाज में ऐसा भेदभाव रहेगा, तब तक वह चारों ओर से चोट खाता रहेगा.

Comments are closed.