जब होके आस-पास भी खला होगा
जब होके आस-पास भी खला होगा
तभी तो रोने में फिर इक मज़ा होगा.
आँखें तेरी देखेंगी जब तड़पता मुझे
मैं सोचता हूँ वो कैसा सिलसिला होगा.
हो सामने हर वक़्त ऐसी बात नहीं
वो अक्स उसका मुझसे है बंधा होगा.
चलता तो हूँ पर न पता है राह मुझे
सही राह जो मिल जाए तो, क्या समां होगा.
उसके खतों के टुकड़ों में जब ढूंढूंगा खुद को
अब तो तभी ये हाल-ए-दिल बयां होगा.
-अश्वनी कुमार
वाह ! वाह ! बहत खूब !!
सर मैं धन्यवाद देता हूँ आपका…