हर किताब के पास….
हर किताब के पास भी एक बड़ा सा दिल होता होगा
इंसानों का अनदेखा दर्द उसमे शामिल होता होगा
जुंबिश सी होती होगी उनके प्रत्येक पन्नों में भी
किसी की नजरे इनायत उन्हें जब हासिल होता होग
किताबों के ढेर में दबी किताब की कराह तो सुनो जरा
दरकिनार किये जाने का उनमें बिस्मिल होता होगा
बीते हुए के कल बारे में पढ़ना जानना अच्छा होता है
अतीत की नींव पर ही टिका मुस्तक्बिल होता होगा
अलमारियों के भीतर पुस्तकों का भी दम घुटता होगा
बेकरार मौजों के लिए पास उनके साहिल होता होगा
किशोर कुमार खोरेन्द्र
{जुंबिश – हरकत , हासिल=प्राप्त ,
मुस्तक्बिल =भविष्य , साहिल=किनारा)
सुन्दर ग़ज़ल !
thankx a lot
बहुत सुन्दर सृजन आदरणीय
aabhaar