व्यंग्य – चमत्कारों की वादियाँ बनाम चमत्कारवाद
चमत्कार की वादियों में चमत्कारवादियों की चाँदी है।देश के बाबाओं ने बहुत पहले से कर रखी ये मुनादी है।बड़े -बड़े
Read Moreचमत्कार की वादियों में चमत्कारवादियों की चाँदी है।देश के बाबाओं ने बहुत पहले से कर रखी ये मुनादी है।बड़े -बड़े
Read Moreउपवन में कलियाँ खिलीं,बगरी विमल बहार।रिमझिम रह-रह दौंगरे, खोल रहे नव द्वार।।खोल रहे नव द्वार, भेक टर-टर-टर बोलें।कर भेकी आहूत
Read Moreमाता मेरी शारदा, विमल विशद विश्वास।कण -कण में उर के बसा,कवि वाणी का दास।। भाग्य मनुज का जन्म है, कवि
Read Moreविवेक ने आँखों परपट्टी बाँध रखी है,बिना किए कर्मबाबाओं की कृपा सेसब कुछ मिल जाए,यही अंतिम उपाय। न पढ़ना जरूरीन
Read Moreरौंदा अपने अधीनस्थ कोकैसी बेढब रीति चली है। छोटी मछली को खा जातींबड़ी मछलियाँ बीन -बीन कर।कुचले जाते नित गरीब
Read Moreनेताजी करते नहीं, जन जनता से प्यार।आता समय चुनाव का,बाँटें प्यार उधार।। नेतागण चाहें नहीं, करना पूर्ण विकास,कौन उन्हें पूछे
Read Moreआज के युग में आदमी से अधिक आदमी के फोटो का महत्त्व है।क्योंकि आदमी का क्या,वह तो कभी भी टाटा
Read Moreछिपकलियों में छिड़ी लड़ाई।मोटी – मोटी लड़ने धाई।। सभी कह रहीं छत है मेरी।बतला तू कैसे छत तेरी।।सबने अपनी युक्ति
Read Moreबनें देश के भक्त, सहज पहचान नहीं।धन में ही आसक्त, हमें क्या ज्ञान नहीं?? बस कुर्सी से मोह, नहीं जन
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