गीतिका
जोर चली पुरवाई है ।नदिया भी बौराई है । स्वप्न कृषक के सूख गये,बाढ़ खेत में आई है । कर्तव्यों
Read Moreहाय इतनी अपेक्षाएँ, एक नन्ही जिंदगी,किस अपेक्षा पर खरा उतरूँ ? मित्रों की कुछ अपेक्षाएँ,चाहतें कुछ प्रेमिका की,कुछ मेरे दायित्व
Read Moreपनपे कंकरीट के जंगल, बड़े मंझोले पेड़ काटकर,पीपल की बरगद से चाहकर बात नही होती । सावन की पुरवैय्या सूनी
Read Moreकौन हृदय की पीर सुनेगा ,इस दुख के निर्जन कानन में ?घड़ी वेदना की निर्मम है, एक झंझावात सा है
Read More[ गीत ]शहर के कोलाहल से,चलो प्रिये लौट चलें !गीतों के गाँव में,पीपल की छाँव में । कोयल अमराई हो,
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