/ छात्र हूँ मैं/
हे मंद मति !, अंध परंपरा का हे मेरी मूढ़ बुद्धि ! मैं छात्र हूँ, जिज्ञासु हूँ, विचारों का अधिकारी
Read Moreहे मंद मति !, अंध परंपरा का हे मेरी मूढ़ बुद्धि ! मैं छात्र हूँ, जिज्ञासु हूँ, विचारों का अधिकारी
Read Moreकठिन होता है समझना इस दुनिया को, हर जीव को, कभी असली से ज्यादा नकली बेहद अपनी दर्जा दिखाती है
Read Moreक्या है मेरे अंदर छिपाने का बाल्य काल से ही मैं नंगा था पुस्तकों में मस्तक लगाके ढ़ूँढ़ता था- मैं
Read Moreचलते हैं लोग दुनिया में कभी तेज, कभी चुस्त कभी सीमाओं के अंदर, कभी सीमाओं को पारकर जो अंधेरे में
Read Moreफैलें दुनिया में निर्मल संघ सत्य की खोज़ें जारी रहें अंगुली मालों को बदलने की शक्ति हर बुद्ध के अधीन
Read Moreतलवार से अगर जीत मिलता तो सबके हाथों में तलवार होते हैं, मनुष्य नहीं, हर जगह हिंस जंतु रहेंगे। छीनना,
Read Moreबेटे की प्रतिभा हरेक पिता को लगती है अपनी प्रतिभा उस बेटे में पिता अपने आपको देखने लगते हैं कि
Read Moreदौड़ते रहते हो तुम? जग में अकेला ! कहाँ तक ? कब तक ? क्या पाया तुमने अब तक इस
Read Moreसच के आईने में… आसान है पुस्तकें पढ़ना, और अपने विचार को जोड़़ना, लेकिन, सच के आईने में कठिन होता
Read Moreकई लोग ऐसे हैं बढ़-बढ़कर दूसरों से बोलते हैं, लेकिन बहुत कम लोग अपने आप से बोलते हैं अपने में
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