कविता

/ वात्सल्य /

बेटे की प्रतिभा
हरेक पिता को
लगती है अपनी प्रतिभा
उस बेटे में पिता
अपने आपको
देखने लगते हैं
कि बेटा अपनी आशाओं का
बहुत बड़ी भरमार है
वह हमेशा चाहते हैं कि
अपनी संतान बढ़िया कदम लें
जीवन में कुछ कर दिखायें
उन्नति के पथ पर अग्रसर होते रहें
जनता के साथ
जनता के बीच में
अपना कुछ जोड़ता रहें
देश की उन्नति में
अपनी चाल दिखाते रहें
यह भी सौ प्रतिशत सच है
कि जितना अधिकार
अपनी संतान पर होता
उतना दूसरों की संतान पर न होता
दिल से दिल का मिलन
प्यार का आवेग
वात्सल्य की मधुमय अनुभूति
शब्दों को पारकर आगे बढ़ती है
जीवन में
हरेक पिता को
अपनी संतान के तेज कदम
दिल पर होते हैं
बच्चे जितना भी बढ़ें
छोटे बच्चे ही लगते हैं।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।