कविता

/ सच के आईने में…/

सच के आईने में…
आसान है पुस्तकें पढ़ना,
और अपने विचार को जोड़़ना,
लेकिन, सच के आईने में
कठिन होता है दूसरों को पढ़ना
और गहराई में छिपे उस
अंतरंग को समझना,
डराती है अहं की छाया वह
हर जगह, विभिन्न रूपों का
जहाँ श्रम की पूजा नहीं होती वहाँ
केवल अंधा श्रद्धा का आवेग होता है
मुश्किल होता है मनुष्य का रहना और
वेश बदलकर चलना
चमक धमक का सज धजकर
आगे का कदम लेना
बहुत बड़ी सीख है
जीने की कला है वह
मानव के इस दुनिया में ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।