कविता

संयम

संयम एक ऐसी साधना है, जो हमें सब मुश्किलों से पार लगाने मे समर्थ है। हम अपने सुख के दिनों मे कभी ईश्वर से ये नहीं कहते कि तुम्हें मेरे हृदय की प्रसन्नता का आभास नहीं है। लेकिन दुख के दिनों मे हम प्रतिदिन उसे कोसते हैं कि तुम्हें मेरी तकलीफ का अंदाजा नहीं लग […]

धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

हठ और अनुशासन

स्त्रियां सतयुग के समय से हठी प्रवृति की होती आई हैं, लेकिन सच है कि उनके अनुशासन की परिसीमा तब भी सर्वोच्च थी, अब भी है, और सदा रहेगी। जब सती को पता था कि शिव के मना करने पर पिता के घर उनका अपमान होगा, तब भी वो वहाँ गयीं और इस हठ के […]

कविता

करुण रुदन

करुण रुदन करता अब मन, पर उसके बिना इसे सुने कौन? मौन पड़ा है जीवन का हर क्षण, उसके बिना मुझे पूछे कौन? जिसके साथ हर ख्वाब देखा, उसके बिना भीगी हृदय की पीड़ा अब जाने कौन? लाल जोड़े और सिन्दूर के सपने को दस बरस निहारा, उसके बिना इन सफेद बेरंग कपड़ों को निखारे […]

कविता

बिछड़ता गया

बिछड़ता गया हर कोई मुझसे, जिसे चाहा देह, रूह और प्राणों से, हर कोई मोह का सौदा करता गया मुझसे, एक-एक कर के बिछड़ता गया हर कोई मुझसे। रुख्सारों मे जो बहे आँसू, उन्हें किसी ने न देखा, मश्गलों में जो सहे जज्बात, उन्हें किसी ने न जाना। शाबाशी में कोई मेरी शौहरत मनाने न […]

कविता

जीवन

जीवन की कुछ वेदनायें ऐसी भी होती हैं जिनका कहीं कोई निराकरण नहीं होता। उन तकलीफों से जूझने पर प्राण स्खलित होते हैं हमारे। क्यों कि जब निहत्था कर के प्रहार महादेव करता है, तब वो आँखें मूंद कर वार पर वार किये जाता है। उसे इस बात का भी भान नहीं रहता कि उस […]

कविता

जब तुम मिलोगे

जब तुम मिलोगे, अब उसी दिन दिल खुशी से गुलज़ार होगा। मैं पूछून्गी तुमसे अलविदा कहे बिना साथ छोड़ जाने की वजह। हाँ सच है कि तुम्हारी कोई भी दलील मेरे हृदय की वेदना का मरहम कभी नही हो सकेगी। क्यों कि तुम्हारा जाना मेरे लिए देह से प्राणों के विरक्त होने के समान असहनीय […]

कविता

कविता

नयन मे चाहे चारों पहर नीर बहे, याद रहे कि वह नीर किसी को ना दिखे। जीवन तुम्हारे चरित्र से झलके, नसों से रिसता रुधिर कहीं न छलके। तुम जो हो, जिन पीडाओं को तुमने सहा, ईश्वर एक मात्र उसका साक्षी रहे। अपने हृदय की कुण्ठा का कमल तुम्हारे भीतर पनपा, वह ज्वालामुखी केवल तुम्हारे […]

कविता

शिव

निर्गुण होकर भी जिसने गुणों का बखान किया है, तत्व का वह विशिष्ट ज्ञान शिव ही है। धतूरे और विष का जिसने पान किया है, सुध और बेसुध में वह सृष्टि का निर्माण शिव ही है।। अक्षर,शास्त्र,वेद और ब्रह्माण्ड का जिसने प्रतिपादन किया है, वर्तमान का वह साक्ष्य प्रमाण शिव ही है।। जीवन और प्रेम […]

कविता

द्वार का पाटन पिता है

रात्रि के  सूने  विपिन  में, सुमन का सौरभ पिता है। मातु घर  की  देहरी शुभ, द्वार  का  पाटन पिता है। पिता  है विश्वास घर का, भोर जिससे   चहचहाता, सुत  सुता के  स्वप्न मीठे, आवरण  नेहिल चढ़ाता, बचपना  रहता सदा ही, शीश की  छाया पिता है। मातु घर  की  देहरी शुभ, द्वार का  पाटन  पिता है। […]

गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

द्रव इन आंखों से निकलता जा रहा है ये सूरज फिर यूं ही ढलता जा रहा है कोई है,जो लाल आंखों का सबब पूछे कुछ जहर सा सीने में जमता जा रहा है सब कुछ बांधने की कोशिश करता था एक एक कर सब  बिखरता जा रहा है गमों को छुपा कर मुस्कुराने का हुनर […]