न कहना कितना जरूरी
अनकहे लम्हों को जो समझ न पाए, उसे कैसे न कहूं कि ये नहीं समझ पाए। अरमानों की मुठ्ठी बन्द
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Read Moreहमारे शब्दों ने अनहदों के दायरे देखे हैं। चट्टानों से उत्तर कर सागर की गहराईयों को देखा है। आलोचकों के
Read Moreमंद सुगंध पवन, भरे आज प्रेम घन, सघन घनघोर में, व्यथा सुन लीजिए।
Read Moreगुरू की महिमा जगी, संत सभी हैं सुखाय, मन व्याकुल यूँ रहे, गुरु के शरणें जाय। जीवन की है ये
Read Moreपुष्पवाटिका खिली है, मधुमास मदमस्त, विष्णु प्रिया खिल रही, तुलसी आँगन की। बसंत की ये बहारें, भर रही अब स्याही,
Read Moreमें खड़ी हूँ दर पे तेरे कर ले तू साज श्रृंगार। आज गौर वर्ण माँ गौरी चन्द्रदीप्ति भरा संसार।। माँ
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