कविता

शब्दानुशासन

हमारे शब्दों ने अनहदों के दायरे देखे हैं।
चट्टानों से उत्तर कर सागर की गहराईयों को देखा है।
आलोचकों के भंवर में अपने अस्तित्व को उतारा है।
कभी तुम भी खुद के शब्दों में उतर कर देखो
खुद के भंवर से निकल कर देखो
ये भी एक हकीकत है
अपने शब्दों की आलोचना करने की कोशिश तो करो,
तब महसूस करना।
शब्दों के मोती यूं ही नहीं मिला करते
पत्थरों की थपेड़ों से होकर गुजरना पड़ता है।
हमारे शब्दों में उतर कर देखो
क्षितिज को महसूस करोगे।
अन्तस्थ की बगिया में खिले गुलाबों की पीड़ा देखना
शब्दों के कांटों से भरी नाजुक कलियों को परखना।
हमारे शब्दों ने अनहदों के दायरे देखे हैं।
चट्टानों से उतर कर सागर की गहराईयों को देखा है।।
— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)