कविता

प्रेम पथ 

मन की आंखों का है इक मन्दिर 

हृदय की सीढ़ियों को महसूस कर।

पहुंचना है तुझे कौन सी मंजिल तक

दिल के भावों के पथ की अनुभूति कर।।

ज्ञान को प्रेम  की सीढ़ियों से ले चल 

जो भी पथ हो वह हो हर पल निश्छल।

हृदय की गति से चलना सीख अनहदों तक

प्रेम भरे सागर के  मोतियों की ओर चल।।

सूर्य के आभूषण को महसूस कर

प्रकृति के सौन्दर्य को मस्तिष्क भर।

जिसका अहसास हो धरा गगन तक

साक्ष्य को प्रभु चरणों में नतमस्तक कर।।

जीवन के इस अनुभव को सार्थक कर चल 

साधना के मार्ग को चिह्नित पथ पर ले चल।

संकल्पित सपनों के उस मानवीयकरण तक 

अपने व्यक्तित्व को सद् मार्ग की ओर ले चल।।

— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ “सहजा”

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)