अवनी
अवनी की इस चादर में , बैठी रही दिन रात में। शान्ति ढूंढ रही थी में, वसुंधरा की लहरों में।।
Read Moreवादियों की छाँव में जो वक्त गुजरा कितना शकून भरा था वो पेड़ो से भरा प्रकृति का किनारा,, कुछ पल
Read Moreये सूरज की किरणों का मुस्कुराना वो गुजरा हुआ जमाना,। एक एक किरण में है, वो अहसास पुराना, वो पहली
Read Moreबैठी हूँ तरू तल में अपनी क्लान्तियों को लिए हुए, देख रही हूँ चंचल मन तितलियों को लिए हुए,। झूम
Read Moreतुम मेरी किताब का वो पहला पन्ना हो, जब खोलती हूँ किताब तो, तुम ही नज़र आते हो। सांझ कहीं
Read Moreकितने इम्तहान दिये मैंने, कितनी तकलीफें सही मैंने, मगर तेरे दिल के किसी कौने में, में नहीं। बरसों इन्तजार किया
Read Moreये बहारें ये मौसम,ये नज़ारे ये सावन,।, जीवन को मिली हैं!ये सौगातें मन भावन ये धरती ये अम्बर,ये हरियाली पावन।।
Read Moreये प्रकृति कुछ कहती है खुद को ढूबने लगी हूँ मैं हर वक्त चल रही थी, हर वक्त सम्भल रही
Read More