राही चलता चल
कुछ भी नहीं है कल ओ राही सब कुछ है इसी पल लक्ष्यहीन मत बन राही संकल्पों पर कर अमल
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Read Moreधर काली का रोंद्र रुप, अंग्रेजों का संहार किया ! मातृभूमि की रक्षा हेतु, दुर्गा का अवतार लिया ! !
Read Moreझुलसा चेहरा, धंसी आँखें, “एसिड विक्टिम”… है मेरी पहचान ! पलक बिछाये, था सुनहरा कल, अब शायद हूँ… कुछ दिन
Read Moreकतार में बढ़े चलो नई मुद्रा तुम्हें पुकारती भारतीयों का साथ दो बढ़े चलो बड़े चलो चोला बदल गया सिर्फ
Read Moreमंद मुस्कान पाक मन ईशवर का रूप करते दूर हर शिकन ! न भय बन्धनों का न कोई जिम्मेवारी कागज
Read Moreटूटे मर्यादा… दिन – रैना क्यों “रामा” अब तेरे देश में ! रिश्तों में धोखा… इंसा दे रहा आदमी के
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