कविता

कवितापद्य साहित्य

स्वजन तार-तार हुए हम यहाँ देखते रहे

स्वप्न क्यूँ आज झरे अपने क्यूँ आज छुटे हम पड़े टूटे-टूटे लोग क्यूँ छूटे-छूटे भातृप्रेम छुट गया आज क्यूँ रूठे-रूठे

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