स्वजन तार-तार हुए हम यहाँ देखते रहे
स्वप्न क्यूँ आज झरे अपने क्यूँ आज छुटे हम पड़े टूटे-टूटे लोग क्यूँ छूटे-छूटे भातृप्रेम छुट गया आज क्यूँ रूठे-रूठे
Read Moreस्वप्न क्यूँ आज झरे अपने क्यूँ आज छुटे हम पड़े टूटे-टूटे लोग क्यूँ छूटे-छूटे भातृप्रेम छुट गया आज क्यूँ रूठे-रूठे
Read Moreबात बस मन की है मन न माने तो शहनाई की गूंज भी बन जाती है तनहाई मन में हो
Read Moreन छोड़ें प्रयास प्यास के लिए विकास के लिए बहार के लिए मकान के लिए व्यापार के लिए परीक्षा के
Read Moreबैठी थी मैं उदास एकांत में छत के कोने में छिपकर, देख लिया शरद के चाँद ने । खेलने लगा
Read Moreमेरे अन्दर भी है आंसुओं का समंदर जो साथ चलता है । साफ कहूं हमसफ़र है ।
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