कविता

बंद किताब

बंद किताब
भी खुली किताब की तरह ही है
खुशबू महक गंध दुर्गंध में भेद नहीं करते
त्याग चुके है साधक।

बंद किताब
संसार की मोह माया आदि का परित्याग
भी एक उदाहरण है।

बंद किताब
में मन भटक भटक कर खुली किताब की
ओर अग्रसर होता रहता है
जो कसौटी पर खरा उतरना होता है
नहीं तो खुली किताब है।

अनिल कुमार सोनी

अनिल कुमार सोनी

जन्मतिथि :01.07.1960 शहर/गाँव:पाटन जबलपुर शिक्षा :बी. काम, पत्रकारिता में डिप्लोमा लगभग 25 वर्षों से अब तक अखबारों में संवाददाता रहा एवं गद्य कविताओं की रचना की अप्रकाशित कविता संग्रह "क्या तुम समय तो नहीं गवां रहे हो "एवं "मधुवाला" है। शौक :हिंदी सेवा सम्प्रति :टाइपिंग सेंटर संचालक