लघुकथा

कथा साहित्यलघुकथा

स्वाभिमानी किसान

स्वाभिमानी किसान “नमस्कार मैनेजर साहब।” मैनेजर के चैंबर में घुसते हुए रामलाल बोला।“नमस्कार, आइए-आइए, रामलाल जी। बैठिए। बताइए क्या सेवा

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