लघुकथा

प्रेम

समिधा का पूरा परिवार प्रेम के देवता विष्णु जी को अपना इष्ट मानकर मन से उनका पूजन करते थे. समिधा ने उनकी मूर्ति बनाई, ससुर जी ने रंगों से उन्हें सजाया, सासु मां ने सलमा-सितारे लगाकर उन्हें वस्त्र पहनाए, पतिदेव रोज ताजे फूलों की माला बनाकर उन्हें चढ़ाते थे. वे सब प्रेम के देवता के दर्शन करने को व्याकुल थे.
एक दिन प्रेम के देवता सचमुच प्रकट हो गए. अपने साथ वे पत्नि लक्ष्मी जी को भी लाए थे. लक्ष्मी जी के आमंत्रण पर मां सरस्वती और शुभ-लाभ दायक गणेश जी भी प्रकट हुए.
सबने प्रेम से सबके चरण स्पर्श कर आदर-सम्मान के साथ उनका अभिनंदन किया और सादर घर के भीतर आने को कहा.
“हम में से कोई एक ही अंदर आ सकता है, आप किसको अंदर आने देना चाहते हैं?” प्रेम के देवता ने पूछा.
परिवार के चारों जन चकरा गए. सबको सभी कुछ चाहिए था.
बहू को ज्यादा समझदार समझकर सासु मां ने उससे अपनी पसंद बताने को कहा-
“प्रेम…” बहू के इतना मात्र कहने से चारों देवता अंदर आ गए.
“जहां प्रेम है, वहीं सब देवताओं का निवास है.” प्रेम के देवता का अनमोल कथन था.

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244