परवाह और जरूरत
“माँ आज तुम खिचड़ी बना कर खा लेना, मैं और रश्मि फिल्म देखने जा रहे है। खाना बाहर ही खाएँगे
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Read Moreवो खुद को बहुत संतुष्ट और एडवांस समझती ही नहीं,भाव-भंगिमा से व्यक्त भी करती रहती थीं ! अलका दी,सबसे बेबाक
Read Moreबडे़ दिनो के बाद वो छत पर नजर आया था, दिल जोर से धड़का पर मैने मुंह घुमा लिया ।
Read More“मतलबी मंशा” वह रात भी एक रात थी, जिसके आगोश में कितनों के अरमान डोली चढ़कर जनवासे की झालर की
Read Moreरामू एक दिहाड़ी मजदुर था । सरकार के नोट बंदी के फैसले से खासा उत्साहित हमेशा की तरह नुक्कड़ पर
Read Moreमैं जिस विद्यालय में उपप्रचार्या के पद पर कार्यरत थी, उसी विद्यालय में एक सुमिता. नाम की स्त्री मेरे कार्यालय
Read Moreआज लगभग एक साल हो गया उसको देखते हुए वह प्रति दिन प्रातः काल ठीक आठ चालीस पर उसके घर
Read Moreरामू एक किसान था । इस साल पड़े सूखे ने उसके खेतों के साथ ही उसे भी सूखा दिया था
Read Moreबैंक पुरानी नोट लेने के लिए नई नोट देने को तैयार है, सरकार भी साथ है, दूध वाला उधार देने
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