ग़ज़ल
समयांतर ने निचोड़ लिए हैं सूहे रंग बहारों के।क्या करने हैं पतझड़ जैसे चेहरे अब गुलज़ारों के।दुश्मन ने दुश्मन से
Read Moreभूले नही जो भुलाने चले थेपते सारे जिनके जलाने चले थेकई रातों से सोये अरमां नही हैंजिनको शब में सुलाने
Read Moreजिंदगी को इन दिनो शरारत सूझी हैहर दिन हर लम्हें दर्द बेहिसाब दे रही है कभी जब भी फुरसत के
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