मुक्तक
01चतुर अपनी एक बात से हंगामा बरपा देता है,हंगामें के भीतर सारी कमजोरी छुपा लेता है,जैसे ही कांपने की नौबत
Read Moreसंसद में मचता गदर, है चिंतन की बात।हँसी उड़े संविधान की, जनता पर आघात॥ भाषा पर संयम नहीं, मर्यादा से
Read Moreबंद आंख सूरज किए, सुबह रही झकझोर।रात दिवस हैं एक से, कुहरा है घनघोर।। सूरज छुपकर सो गया, ले बादल
Read More(१)क्षणिक सम्मान की प्रतीक्षा न करना,संवैधानिकता पर तुम सन्देह न करना।प्रेम परिभाषित सम्मान जहां हो जाय,वहां कभी प्रश्नवाचक संज्ञा न
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