मुक्तक/दोहा

पद्य साहित्यमुक्तक/दोहा

दोहे

प्रतिरोध के दोहेलोभी ढोंगी लालची,झूठे चोर लबार।बन बैठे जनतंत्र के ,सारे पहरेदार।।1 सूरज कहता मैं हरूँ,धरती का अँधियार।मुझको नहीं पसंद

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