रो रहा संविधान
संसद में मचता गदर, है चिंतन की बात।हँसी उड़े संविधान की, जनता पर आघात।। भाषा पर संयम नहीं, मर्यादा से
Read Moreसंसद में मचता गदर, है चिंतन की बात।हँसी उड़े संविधान की, जनता पर आघात।। भाषा पर संयम नहीं, मर्यादा से
Read Moreरहना पत्थर बन नहीं, बन जाना तुम मोम।मानवता को धारकर, पुलकित कर हर रोम।। पत्थर दिल होते जटिल, खो देते
Read Moreक्यों लगे हो मिथ्याओं के पीछे माला जपने,जरूर देखिये सुखद भविष्य के सुंदर सपने,खुद बढ़ना है तुझे आगे साथ नहीं
Read Moreआलू से सोना बना, फैक्ट्री चली अपारदस रुपिया का बटाटा,चालिस बिके बजार फिर आई जब जलेबी,मची जगत में धूमरोजगार मिलने
Read Moreनव रूपों में मात है, देती दर्शन आप।श्रृद्धा से सिमरन करो हर लेती संताप।।काली दुर्गा आप हैं, लिए हाथ तलवार।भक्तों
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