कविता : कूटनीति
दफ्तर के ऑफिसर ने दिवाली के दिन एक कर्मचारी की रिश्वत को लौटा दिया ये देख ऑफिसर की बीवी का
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Read Moreसबकुछ वही है वही सुर…वही साज़ शाखों पे गिरती हुई शबनम की आवाज़ हाँ सबकुछ वही है वही रंग…वही रूप
Read Moreचल सजनी! कुछ पेड़ लगायें अपनी प्रेम निशानी बैठ छांव मे पथिक पढ़े अपनी प्रेम कहानी!! कहीं लगायें वृक्ष आम
Read Moreलोहे के काम में टाटा जुते के काम में बाटा दुनियां में इतना नाम कर रहे है और हम निट्ठले
Read Moreविचरण करता हो जो पंछी , उन्मुक्त खुले आसमाँ में रहना पिजड़े में हर वक्त उसको कब भाता है पर
Read Moreझिलमिल बहार जगमगाहट से ज़ड़े सितारों में थी भीनी सी महक दूरियों का कायम सिलसिला अविराम था हृदय मेरा काँच
Read Moreकोहरे के कोहरा’म की एक धुंधमय सुबह कोहरे के पंख उड़ान की इतरन के आगोश में थे उधर बालकनी की
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