बेटी होती क्यूं पराई ??
बहुत लाड दिया बहुत प्यार किया अपने आंगन की किलकारी का बहुत बङा सम्मान किया नही किया ओझल कभी अपनी
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Read Moreरूठ गया मैं जिंदगी से, जब टूट गए मेरे सपने। हर चेहरा लगता पराया, जब छूट गए मेरे अपने। आस
Read Moreतिमिर भरें जग में छा गई अमावश काली। तरू विगलित हुएं सूखें पत्तें सूखी डाली।। “प्रिय” कैसे रूठे तुम? भीगी
Read Moreजबसे तुझ पर आ गया है मेरा मन वियोग में मेरी रूह हो गयी है आवारा मेरा मन हो
Read Moreनये दौर के इस युग में, सब कुछ उल्टा दिखता है, महँगी रोटी सस्ता मानव, गली गली में बिकता है।
Read Moreमन की हल्दीघाटी में राणा के भाले डोले हैं, यूँ लगता है चीख चीख कर वीर शिवाजी बोले हैं, पुरखों
Read Moreमौसम बार बार ले रहा है, बेमौसम की करवट, रंग बदलने में मार खा रहा है बेचारा गिरगिट, कभी
Read Moreगुरु ज्ञान के सागर होते, शिष्य धरातल की एक बूँद आप हैं कुम्भकार गुरुवर मैं हूँ माटी का एक कुम्भ मैं
Read Moreवक्त ने बिछायी है कुछ ऐसी बिसात , अपने ही तो कर रहे हैं अपनों पर वार !! भावनाओं का
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