गुरु ~ चरित्र
गुरु ज्ञान के सागर होते, शिष्य धरातल की एक बूँद आप हैं कुम्भकार गुरुवर मैं हूँ माटी का एक कुम्भ मैं
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Read Moreवक्त ने बिछायी है कुछ ऐसी बिसात , अपने ही तो कर रहे हैं अपनों पर वार !! भावनाओं का
Read Moreना मुस्लिम ना हिंदु, इंसान लिखता हूँ, सदा कलम से अपनी हिंदुस्तान लिखता हूँ…! जात-पात क्या है, राग-द्वेष क्या है,
Read Moreआसमान को देखकर , बेटी भरे उड़ान माँ के दिल में हो रही , आशंका बलवान ।। रिझा रहा हिय
Read Moreकाश ! मैं एक विशाल वृक्ष और छोटे-छोटे पौधे ही होती …. तो एक विशाल वृक्ष ही होती जो मैं
Read Moreपूरा बाग़ घूम लिए, आख़िरी छोर आ गया, हाथ में कोई फूल नहीं, पर सुकून है कि, कांटो पर चलते
Read Moreलड़कियों पर क्यों होते अत्याचार , मिलती है प्रताड़ना हर कदम पर , गलती चाहे जिसकी भी हो पर ,
Read Moreभ्रष्टाचार का तो अंत ही न दिखता , जहां देखो वहाँ मूहँ फाड़े खड़ा, मैंने भी आज वही देखा ,
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