कविता

कवितागीत/नवगीतपद्य साहित्य

आज मनुष्य की प्रकृति के आगे अंतिम हार हुई…!!

बारिश ने कल काल का अविचल रूप बनाया था, कृषकों के कंदुक स्वप्नों को बीती रात बहाया था, रीति गागर,

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