लघुकथा – मेरा गाँव
बात कोई पुरानी नहीं थी, बस कुछ ही महीने हुए थे शहर आए। एक अच्छी नौकरी, बड़ा सपना और ऊँची
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Read More“दादू आप मुझे कभी जादुई संसार में नहीं ले चले, ले चलो न दादू!” छोटा-सा नितिन मचल गया.दादू ने कुछ
Read More“बोतल के ठंडे पानी से तुम्हारी तपन तो कुछ हद तक शांत हो गई, पर मेरी भयंकर तपन का क्या
Read Moreसाच पास पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला के बीच पांगी घाटी में प्रवेश के लिए एक दर्रा है। यह समुद्र तल
Read Moreपहाड़ों में जीने के लिए पहाड़ होना पड़ता है। जिस तरह पहाड़ धूप- छांव को सहते हुए हमेशा अपनी पीठ
Read Moreकुछ वर्षों पूर्व रमेश को एक साहित्यिक आयोजन में कवियों/कवयित्रियों को आमंत्रित करने की जिम्मेदारी दी गई। चूंकि यह आयोजन
Read Moreसर्दियों अपना कहर ढा रही थी । चूल्हा- चौका का काम तो मानो एक पहाड़ बना हुआ था। किसी तरह
Read More“सुहाना, आंटी जी किधर हैं? गांव वापिस चली गईं क्या?” सुधा जी को घर में न देख सुहाना की सहेली
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