कुण्डलीया छंद
🌻कुण्डलीया छंद🌻 🌻१🌻 सुन्दर ऐसा चाहिए ;जो मन मंजुल होय सुंदर सदैव, मन भला ;तन छवि देता खोय तन
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Read Moreसत्य ही गवा है रोज सत्य ही जवां है रोज। मोज देर कितनी असत्य कर पायेगा। विजय श्री वरण सदा
Read Moreलालिमा सुशोभित मुखमंडल में उनके, अपूर्व सौंदर्य नख-शिख में समाया है। व्याकुल हृदय को लुभाते हैं कंज नयन, वाणी में
Read Moreडी.टी सी. की बस में चढ़कर, अपनी शामत आई, मैं हंसने की इच्छा रखता, आती रोज रुलाई. आती रोज रुलाई,
Read Moreमहंगाई बढ़ती रही, जैसे कोई बाढ़, अफसर लेते ही रहे, जनसंख्या की आड़. जनसंख्या की आड़, है बढ़ती महंगाई, महंगाई
Read Moreजीवन के इस मोड़ में, यादें ही अब शेष बेटा बेटी छोड़ के, चले गए परदेश चले गए परदेश, जरा
Read Moreओढ़ ली चूनर धानी वसुधा ने आज फिर धरती न धीर मन मौन इतराती है। अंबर नत होकर चूमता कपोल
Read Moreरसाल सी रसीली आम्र कानन बीच वह, वर्षा वारि धार साथ खेलती-नहाती है। प्रकृति सुंदरी समेट सुंदरता सकल, समाई है
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