कुंडलियां
देखा देखी क्यों करे, हो मन की ही बात। सोचे समझे फिर करे, करे न कोई घात।। करे न कोई
Read Moreरटती गिरिधर नाम की, माला सुधबुध भूल। गाथा निर्मल प्रेम की, भक्ति भाव के फूल। भक्ति भाव के फूल, थाट
Read Moreरोके हम आवेग को, कसना विनय लगाम। मर्यादा बंधन भला, लगती प्रकृति ललाम।। लगती प्रकृति ललाम, सादगी हर दिल जीते।
Read Moreएक नई शुरुआत, करे प्रेम बरसात, सुरभित पुष्प बन, जग महकाइए।। सब मिल हो पहल, सहेजे वन जंगल, पेड़ लगा
Read Moreअबला न इसे मान, मात ममता फुलवारी। शक्ति, भक्ति प्रतिरूप, जन्म दात्री हैं नारी।। सेवा, संयम मूर्ति, स्नेह से भर
Read Moreदीप माला,पुष्पहार, सजाये बंदनवार, रंगोली में रंग भर, आँगन सजाइये।। दीप अपनी माटी के, प्रेम पगी संस्कृति के, घर-द्वार उजियारा,
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