दोहे
बस यूं ही बदनाम है, सड़क-गली-बाजार।लूट रहे हैं द्रौपदी, घर-आँगन-दरबार॥ कोई यहाँ कबीर है, लगता कोई मीर।भीतर-भीतर है छुपी, सबके
Read Moreजैवविविधता प्रकृति में, जीवन का आधार।सकल सृष्टि का मानते, जीव – जन्तु आभार । जैवविविधता क्षरण से, सारा जग है
Read Moreसंसद में मचता गदर, है चिंतन की बात।हँसी उड़े संविधान की, जनता पर आघात॥ भाषा पर संयम नहीं, मर्यादा से
Read Moreबंद आंख सूरज किए, सुबह रही झकझोर।रात दिवस हैं एक से, कुहरा है घनघोर।। सूरज छुपकर सो गया, ले बादल
Read More(१)क्षणिक सम्मान की प्रतीक्षा न करना,संवैधानिकता पर तुम सन्देह न करना।प्रेम परिभाषित सम्मान जहां हो जाय,वहां कभी प्रश्नवाचक संज्ञा न
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