ग़ज़ल
इश्क़ में ठोकरें रोज़ खाते रहे।।ग़म हमें ज़िंदगी भर सुहाते रहे। चाहतों की हमें छाँव अच्छी लगी।हम उन्हें दर्द में
Read Moreआप मानते हैं कि मैं बेवकूफ हूँअच्छा है, पर आपकी सोच का दायरा कितना छोटा है कम से कम मेरी योग्यता
Read Moreवाह रे! कलयुग तेरी माया भी कितनी अजीब है,बड़े-बड़े ज्ञानी, संत, महात्मा, विद्वान या फिर हो आज का विज्ञानकिसे समझ
Read Moreक्या आप किसी को बताना पसंद करेंगे या यूँ ही मन में गुबार सहेजें रहेंगे,आपकी नाराजगी का आधार क्या है?या मान
Read Moreमेरी लेखनी मेरा अभिमान,मैं करती इसका बहुत सम्मान, मन के भावों को लेखनी लिखती,सही गलत मतलब समझती, लेखनी हमेशा सत्य
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