धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

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संन्यास आश्रम की महत्ता पर संन्यासी स्वामी दयानन्द का उपदेश

ओ३म् महर्षि दयानन्द के प्रसिद्ध ग्रन्थों में से एक ग्रन्थ संस्कारविधि है। इस ग्रन्थ में उन्होंने वेदों पर आधारित 16

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एक ईश्वर, एक संसार और एक ही मनुष्य जाति विषय पर कुछ विचार

ओ३म् यह संसार पृथिवी, अग्नि, जल, वायु और आकाश का जीवों के सुख-दुःख के उपयोग की दृष्टि से समुपयुक्त मिश्रित

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महर्षि दयानन्द का नवदम्पत्तियों व गृहस्थियों को वेदसम्मत कर्तव्योपदेश

ओ३म् महर्षि दयानन्द महाभारतकाल के बाद संसार में वेदों के सर्वाधिक ज्ञानसम्पन्न विद्वान व ऋषि हुए हैं। उन्होंने वेदों वा

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ईश्वराधीन कर्म-फल व तद् आश्रित सुख-दुःख व्यवस्था पर विचार

ओ३म्   संसार में मनुष्य ही नहीं अपितु समस्त जड़-चेतन जगत क्रियाशील हैं। सृष्टि पंचभौतिक पदार्थों से बनी है जिसकी

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वैदिक आश्रम व्यवस्था श्रेष्ठतम सामाजिक व्यवस्था

ओ३म् ईश्वर का स्वभाव जीवों के सुख वा फलोभोग के लिए सृष्टि की रचना, पालन व प्रलय करना है। सृष्टि

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महर्षि दयानन्द का आदर्श एवं प्रेरक जीवन

ओ३म् महर्षि दयानन्द वैदिक विचारधारा के ऋषि, विद्वान, आप्तपुरुष, सन्त, महात्मा सहित देश व समाज के हितैषी अपूर्व महापुरुष थे।

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