धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

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महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज के दलितोद्धार कार्यों पर स्वामी वेदानन्द तीर्थ जी का प्रेरणादायक उपदेश

ओ३म्   सृष्टि के आरम्भ से महाभारत काल तक सभी वैदिक सनातनधर्मी स्वयं आर्य कहलाने में गौरव का अनुभव करते

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आर्य सृष्टि के आदि काल से आर्यावर्त्त-भारत के मूल निवासी हैं

ओ३म् महर्षि दयानन्द चारों वेदों के सत्य अर्थों के जानने वाले सृष्टि के इतिहास में अपूर्व ऋषि व वेद-भाष्यकार थे।

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पुराणों के अग्राह्य विधानों पर स्वामी दयानन्द व स्वामी वेदानन्द के उपदेश

ओ३म् मनुष्य का जीवन सत्य व असत्य को जानकर सत्य का पालन व आचरण करने तथा असत्य का त्याग करने

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‘संसार के सभी मनुष्यों के पूर्वज एक थे व वैदिक धर्मानुयायी थे’

ओ३म् सृष्टि का यह अनिवार्य नियम है कि इसमें मनुष्य की उत्पत्ति वा जन्म माता-पिताओं से ही होता है। माता-पिता

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कैकेय नरेश महाराज अश्वपति की सार्वजनिक घोषणा’

ओ३म् –प्राचीन भारत का स्वर्णिम आदर्श इतिहास- भारत विगत लगभग पौने दो अरब वर्षों से अधिक तक वैदिक धर्म व

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पं. गणपति शर्मा का वैदिक धर्म व महर्षि दयानन्द के प्रति श्रद्धा से पूर्ण प्रेरणादायक जीवन

ओ३म् प्राचीनकाल में धर्म विषयक सत्य-असत्य के निणर्यार्थ शास्त्रार्थ किया जाता था। अद्वैतमत के प्रचारक स्वामी शंकराचार्य के बाद विलुप्त

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आर्यसमाज की स्थापना और इसके नियमों पर एक दृष्टि

ओ३म् महर्षि दयानन्द सरस्वती (1825-1883) उन्नीसवीं शताब्दी के समाज व धर्म-मत सुधारकों में अग्रणीय महापुरुष हैं। उन्होंने 10 अप्रैल सन्

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महर्षि दयानन्द द्वारा लिखित व प्रकाशित ग्रन्थों पर एक दृष्टि

ओ३म् महर्षि दयानन्द (1825-1883) ने सन् 1863 में अपने गुरू दण्डी स्वामी विरजानन्द सरस्वती की मथुरा स्थित कुटिया से आगरा

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यज्ञ का महत्व एवं याज्ञिकों को इससे होने वाले लाभ

ओ३म् चार वेद, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद, ईश्वरीय ज्ञान है जिसे सर्वव्यापक, सर्वज्ञ व सर्वशक्तिमान सृष्टिकर्ता ईश्वर ने सृष्टि

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