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धर्म के लक्षण ?

मित्रो, आपने धर्म क्या इसके बारे में तो जरुर पढ़ा होगा और अपने धर्म के बारे में बहुत कुछ जानते होंगे। सनातन धर्म में धर्म के कुछ लक्षण बताये गए हैं ,मनुस्मृति 6 /92 में धर्म के दस लक्षण बताये गए हैं ।

धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥

1- धृति (धैर्य)

2- क्षमा ( दया , उदारता )

3 – दम ( अपनी इच्छाओं को काबू करना , निग्रह )
4 -अस्तेय ( चोरी न करना , छल से किसी चीज को हासिल न करना )
5 -शौच ( सफाई रखना , पवित्रता रखना )
6 -इन्द्रिय निग्रह ( इन्द्रियों पर काबू रखना)
7 -धी ( बुद्धि )
8 – विद्या (ज्ञान)
9 – सत्य ( सत्य का पालन करना , सत्य बोलना )
10- अक्रोध ( क्रोध न करना )

मनु महाराज के धर्म के इन लक्षणों के बारे में आप सबने कई आर्य समजियो से भी सुना होगा , अक्सर वो दोहराते रहते हैं।

अब देखते हैं की मनु महाराज के बताये ये धर्म के 10 लक्षण वास्तव में धर्म के ही लक्षण हैं या किसी और के ?

1 -मनु महाराज ने धर्म के लक्षणों ने सबसे पहले धृति (धैर्य ) को बताया है , अब सबसे पहले बताया है तो मतलब ये हुआ की धर्म का सबसे बड़ा गुण धैर्य है । संकट पड़ने पर धैर्य रखन अच्छा गुण हैं पर धर्म के दस लक्षणों में सबसे बड़ा होने का कारण समझ नहीं आया , यदि कोई निर्बल या असहाय व्यक्ति एक हद तक जुल्म सहने के बाद अपना धैर्य खो दे तो क्या वह अधर्मी कह लायेगा?
हाल में ही दिल्ली में हुयी रेप की घटनाओ के कारण जनता ने अपना धैर्य खो दिया और सडको पर अपराधियों को सजा दिलाने के लिए आन्दोलन किया , तो क्या ये लोग अधर्मी हुए?

2 – दूसरा लक्षण क्षमा बताया गया है , ये भी धर्म का लक्षण कैसे है ये समझ नहीं आता . मेरा मानना है की क्षमा धर्म का रूप है ही नहीं बल्कि इसका उपयोग बहुत सिमित रूप से होना चाहिए । क्या चोर, डाकुओं, बलात्कारियों , कातिलों को क्षमा कर देना चाहिए ? यदि क्षमा करना धर्म है तो किसी के क्षमायाचना करने से पहले ही क्यों न उसे क्षमा कर दिया जाये ?
यदि आतंकवादी, कातिल, बलात्कारी आदि जघन्य अपराध करने वोलो को अदालत उनके क्षमा मागने पर भी उन्हें उनके किये का दंड दे तो क्या जज अधर्मी कहलायेगा?

3 – वैसे मनु स्मृति में धर्म के छठे लक्षण यानि की इंद्री निग्रह का अर्थ भी दम यानि इन्द्रियों का निग्रह ही है पर इसको अलग अलग क्यों लिखा है ये मुझे समझ नहीं आया?
पर मूल प्रश्न यही है की क्या कोई आज तक मन पर काबू रख पाया है ? अगर मन में काबू पा लिया जाये तो मानव विकास ही रुक जायेगा , नई खोजे रुक जाएँगी ।

4 – चौथा लक्ष्ण अस्तेय यानि चोरी न करना है या छल से किसी वास्तु को हासिल न करना , पर क्या मनु महाराज कृष्ण के साम दंड भेद की निति को नहीं जानते थे ?

5 – शौच का अर्थ है सफाई , पर सफाई धर्म का हिस्सा है ये कौन सी बात हुयी?आज भी अधिकतर साधू संत अपने शारीर पर भभूत , राख आदि मले रहते हैं , कई साधू संत ऐसे होते हैं जो कई कई दिनों तक नहाते नहीं हैं , क्या वो अधर्मी कहलायेंगे?
कई लोग साधू संतो के पाँव धोके पीते हैं क्या उसे सफाई कहेंगे? क्या वो लोग अधर्मी कहलायेंगे ?

6 – इसका उत्तर तीसरे लक्षण में दे दिया गया है

7 – सातवा लक्षण बुद्धि है , बुद्धि सभी मनुष्यों की समान नहीं होती , कोई प्रश्नों के हल जल्दी सुलझा लेता है कोई देर से और कोई तो सुलझा ही नहीं पता , तो क्या जो प्रश्नों को सुलझा ही नहीं पता उसे अधर्मी कहेंगे ?इन्सान ज्ञान तो बढाया सकता है पर बुद्धि नहीं । जैसे की एक मंदबुद्धि बालक बड़ा होके भी मंदबुद्धि ही रहता है वो अपनी बुद्धि नहीं बड़ा सकता , तो क्या वो अधर्मी कहलायेगा?
जिस चीज पर मनुष्य का वश ही नहीं उसे धर्म का हिस्सा मनाना कहा तक उचित है?

8 – आठवा लक्षण है विद्या , विद्या धर्म को धर्म का लक्षण कहना कितना उचित है? , हिन्दू धर्म के अनुसार रावण भी कई विद्याओं में निपुण था पर उसे हमेशा अधर्मी ही कहा गया है । आज भी कई उच्च पढ़े लिखे लोग भ्रष्टाचार, अपराध में लिप्त पाए जाते हैं तो क्या उन्हें धार्मिक कहेंगे?
एक और अस्चर्य की इन्ही मनु महाराज ने शुद्रो के लिए ये विधान लिख दिया था की यदि शुद्र विद्या ग्रहण करे तो उसको भयानक दंड दिए जाये , और खुद ही विद्या को धर्म का लक्षण मान रहे हैं । तो क्या अनपढ़ जो किसी कारणवश विद्या प्राप्त नहीं कर पाए थे / है पर सादा , सीधा, छल रहित जीवन बिता रहे हैं वो अधर्मी हैं ?

9 – धर्म का नौवा लक्षण है सत्य , सत्य सचमुच धर्म का सबसे बड़ा लक्षण हो सकता है पर क्या सत्य बोलना हमेशा धर्म हो सकता है ? मान लीजिये किसी व्यक्ति की हत्या या लूट के लिए कुछ अपराधी उसके पीछे पड़े हुए हैं , वो व्यक्ति अपनी जान और धन बचाने के लिए किसी घर में शरण लेता है , अपराधी उस घर के मालिक से उस व्यक्ति के बारे में पूछते है , उस मकान मालिक को क्या सत्य बोलना चाहिए ? अगर मकान मालिक उस व्यक्ति को बचाने के लिए असत्य बोलता है , तो क्या वो अधर्मी कहलायेगा ?
या सत्य की परिभाषा यंहा बदल जाएगी?

10- धर्म का दसवा लक्षण है अक्रोध , पर अक्रोध करना भी धर्म के लक्षणों में गिनना कहा तक उचित है ? क्रोध पर तो नियंत्रण श्रीराम और कृष्ण भी नहीं कर पाए थे तो साधारण आदमी की क्या विसात?
यदि किसी की अनुचित मांग या बात पर क्रोध आ जाये तो के वो अधर्मी कहलाएगा ?
जो भी हिन्दू ( सनातनी )अक्रोध को धर्म का लक्षण मानता है उससे मैं ये पूछना चाहूँगा की पाकिस्तान या बंगला देश में हो रहे हिन्दुओं पर अत्याचार को सुन या देख कर क्रोधित हो जाता है क्या वो अधर्मी है ?

दरअसल जितने भी धर्म के लक्षण बताये गए हैं वो नैतिकता के हैं , इन लक्षणों को धर्मगुरुओं ने जबरजस्ती धर्म में घुसा दिया है ताकि जनता को आसानी से धर्म के नाम पर गुमराह किया जा सके और उनकी दुकानदारी चलती रहे । आखिर कौन व्यक्ति नहीं होगा जो इन नैतिक गुणों( सत्य, सफाई, बुद्धि, विद्या अदि को अपने जीवन में नहीं उतरना चाहेगा? इसलिए धर्म के दुकानदारो ने बड़ी चालाकी से इन नैतिक गुणों को अपनी धर्म की दुकान में सजा लिया।

और इस दुकानदारी का प्रचार करने में आज कल कुछ आर्यसमाजी जोर शोर से लगे हुए हैं।

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

2 thoughts on “धर्म के लक्षण ?

  • विजय कुमार सिंघल

    केशव जी,
    १. सबसे पहले तो आप यह समझिये कि ये लक्षण मानव धर्म के हैं, किसी पूजा पद्धति या सम्प्रदाय, जिसको आप धर्म समझते हैं, उसके नहीं है.
    २. ये लक्षण या गुण जिस क्रम में दिए गए हैं वह श्लोक बनाने के कारण हैं. उनमें कोई छोटा-बड़ा नहीं है. सबका सामान महत्त्व है.
    ३. दम और इन्द्रियनिग्रह में अंतर है. दम जहाँ सभी तरह की इच्छाओं को नियंत्रित करने का द्योतक है, वहीँ इन्द्रिय निग्रह केवल इन्द्रियों को नियंत्रित करने से सम्बंधित है, जिनमें सभी ज्ञानेद्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ सम्मिलित हैं.
    4. ये गुण रखने वाला व्यक्ति चाहे पूजा पाठ करता हो या न करता हो, धार्मिक ही कहा जायेगा, चाहे वह ईश्वर का अस्तित्व न मानता हो.
    ५. धर्म का वास्तविक अर्थ है- कर्तव्य और आचरण. उसी को सुधरने के ये दस सूत्र दिए गए हैं.
    अब कहिये आपको क्या कहना है?

    • Man Mohan Kumar Arya

      Bahut sarahniye vichar avam Uttar. Lekhak Sh Kesav ji yadi Arya sahltya ka adhyayan Karen to unki sabhi shankaon ka samadhan ho sakta hai. Maharishi Manu kam se kam Sh. Keshav ji se to adhik gyani the jin par hazaron varshon tak sansat ke logo ne visbas kiya hai jinme se ek Maharishi Dayanand bhee hai. Dharm ke dus lakshano ka yes sarvottam udharan hai. Inka palan na karne se he sansar me ashani hai.

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