कविता

हाइकु

1
तड़ तड़ाक
बची नहीं गरिमा
चोटिल आत्मा ।

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2
तड़ ताड़क
सहमा बचपन
देख माँ गाल ।

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3
तड़ तड़ाक
रिश्ता नाजुक टूटा
काँच सा कच्चा ।

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4
हर्ष अपार
घन लेकर आये
फुही बहार ।

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5
छन्न संगीत
तपान्त करे वर्षा
गर्म तवे सी

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6
फुही झंकार
लगे झांझर झन
किसान झूमे ।

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7
बीज लड़ता
भूमि-गर्भ अंधेरा
वल्लरी देता ।

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8
उगाये मोती
सुख नींद वो सोते
खेत जो जोती ।

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9
बिखरे फुही
जगत खिल उठा
बने फुलौरी ।

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

One thought on “हाइकु

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया. 🙂

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