कथा साहित्यसंस्मरण

बुढ़ापा

पिता जैसा बनना ….. हर लडकी का सपना ….. लक्ष्य निर्धारित किया अपना ….
संयुक्त परिवार विलीन नहीं हो सकते हैं
रफू का गुण सीखो रिश्ते रफ़ू से ही चलते हैं ..
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बुढापे पर बात चली है … और मैं उम्र गुजारते उस पडाव पर आने वाली हूँ …. बीच की पीढ़ी हूँ ….. कई सीढ़ी चढ़ चुकी हूँ …. कई घरों को बनते ,बिगड़ते देखने की पूंजी है मेरे पास ….
घर संस्कारों से बना होना चाहिए …. नई पीढ़ी ,अगर पुरानी पीढ़ी को ,अपने बुजुर्गों का अहमियत देते देखी होगी तो वो जरुर सीखेगी ….

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कुछ दिनों पहले चंडीगढ़ की यात्रा थी
हम बुजुर्गों के टोली में बैठे
चर्चा कर रहे थे बुढापे पर
मेरा कहना था … बुढ़ापा यानि बिछावन लेटा शरीर
अगर हम दो रोटी सेक कर खिला सकते हैं तो बुढ़ापा कैसा ?
हमसे पहले की पीढ़ी में 10 से 20 साल की उम्र में शादी हुई
40 साल में सारी जिम्मेदारी पूरी और दादी नानी बन गुजर गई जिन्दगी
आज 30 से 35 साल की उम्र में शादी होती है
50 से 55 की उम्र गुजर गई जिम्मेदारी में
अपने लिए अभी तो जीना शुरू किये। ….
बच्चों को पंख मिले उन्हें उड़ने दो। …
बनाने दो खुद से खुद के लिए नीड़
पालने दो खुद के छौने
मत जिओ केवल बन दादी नानी
जब शरीर बिछावन पर जाएगा
एहसास कहाँ होगी , कहाँ पड़े हैं
अस्पताल या वृद्धाश्रम या गली के सडको पर

 

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

5 thoughts on “बुढ़ापा

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लिखा है बहिन जी। बुढ़ापा बहुत कष्टदायक होता है। लेकिन इससे बचने का कोई रास्ता नहीं।

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      जी ….. बहुत बहुत धन्यवाद आपका ….

  • विभा बहन, पड़ कर मन में बहुत विचार आये . कल को मैं ७२ का हो जाऊँगा . सारी जिंदगी गुज़र गई काम करते करते और बच्चों को पालने पढाने से लेकर उनकी शादीआं होने तक . दो बेतीआं और एक बेटा है . बेटे बहु को अपना घर लेने में मदद कर दी और वोह मज़े से आज़ाद रहते हैं और हम भी आज़ाद हैं . कोई दखलंदाजी नहीं है . इस का एक फैदा हमें यह हुआ कि वोह हमें देखने आते ही रहते हैं और दो पोते तो हमेशा गले लग कर मिलते हैं और हमारा लान भी वाही काट देते हैं . कहने का मतलब यह है कि मैंने अक्सर देखा है कि संयुक्त परिवार में लड़ाई झगडा होता ही रहता है जिस से दिलों में दरार आ जाती है और जब वोह जुदा होते हैं तब तक नफरत बहुत बड चुक्की होती है . ऐसा हम ने यहाँ भी बहुत देखा है . दो तीन लड़के होते हैं और हम उनको इकठा रखना चाहते हैं ताकि लोग ना कुछ कहें . अब ज़माना बहुत बदल गिया है जैसे आप ने लिखा ही है. आखिर में एक बात कहूँगा कि हर दंपति को अपने भाविष्य के लिए इतना सेव करके रखना चाहिए कि भुडापे में किसी के आगे हाथ ना फैलाने पड़ें और साथ ही हाथ काट कर मत दें , सब ज़मीन जाएदाद अपने कंट्रोल में होनी चाहिए किओंकि मैंने बहुत लोगों को देखा है पहले तो बच्चे माता को खुश करके सभी कुछ ले लेते हैं , बाद में उन को धक्के खाने पड़ते हैं . जिंदगी का आख़री पड़ा बहुत मुश्किल है , अगर उम्र ज़िआदा हो जाए तो सभी उस के मरने का इंतज़ार करते रहते हैं .

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      आभारी हूँ …. सादर प्रणाम भाई जी …. शुभ संध्या …. आपके विचार बहुत अच्छे लगे …. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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