स्वास्थ्य

कम खाइए, स्वस्थ रहिये

कहावत है कि भोजन के अभाव में उतने लोग नहीं मरते, जितने भोजन की अधिकता के कारण मर जाते हैं। यह कहावत पूरी तरह सत्य है। भोजन के अभाव में अर्थात् भुखमरी से होने वाली मौतों की संख्या बहुत कम, लगभग शून्य, है। पौष्टिक भोजन के अभाव में अर्थात् कुपोषण से होने वाली बीमारियों से मरने वालों की संख्या भी कम है, लेकिन अधिक खाकर बीमार पड़कर मरने वालों की संख्या सबसे अधिक है। आप किसी भी क्लीनिक या अस्पताल में जाकर देख सकते हैं कि वहाँ दो-तिहाई से अधिक रोगी पेट सम्बंधी बीमारियों से पीड़ित होते हैं, जो भोजन के अभाव में नहीं बल्कि भोजन की अधिकता के कारण बीमार पड़े होते हैं।

इसलिए स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है कि हम जो भी खायें कम मात्रा में ही खायें। इस सम्बंध में गधों में पाये जाने वाले दो गुण बहुत उपयोगी हैं- ‘कम खाना और गम खाना’। इन दोनों नियमों का पालन करने वाला सदा सुखी रहता है। लेकिन अधिकतर होता यह है कि स्वाद के वशीभूत होकर हम आवश्यकता से अधिक वस्तुएँ खा जाते हैं, जिन्हें हमारी पाचन प्रणाली अच्छी तरह पचा नहीं पाती। विभिन्न कारणों से होने वाली दावतों में प्रायः ऐसा देखा जाता है। एक तो वहाँ पचने में भारी-भारी वस्तुओं की भरमार होती है, दूसरे उन्हें भी लोग ठूँस-ठूँसकर खा लेते हैं। इससे पेट में विकार उत्पन्न होते हैं, जो अनेक घातक रोगों के कारण बनते हैं। बहुत से लोग चूरन-चटनी के सहारे उस भोजन को पचाने का प्रयास करते हैं, परन्तु प्रायः असफल रहते हैं।
 
कई विद्वानों ने सही कहा है कि हम जो खाते हैं, उसके एक तिहाई से हमारा पेट भरता है और दो तिहाई से डाक्टरों का। इसका तात्पर्य यही है कि हमारे जीवन के लिए अल्प मात्रा में भोजन ही पर्याप्त है और उससे अधिक खाने पर विकार ही उत्पन्न होते हैं। उनके इलाज में धन व्यय होता है, जिससे डाक्टरों को अच्छी आय होती है। इसलिए यह बात गाँठ बाँध लीजिए कि कोई वस्तु चाहे कितनी भी स्वादिष्ट क्यों न हो और भले ही मुफ्त क्यों न हो, उतनी ही मात्रा में खानी चाहिए, जितनी हम सरलता से पचा सकें। अधिक खाना ही बीमारियों का सबसे बड़ा कारण है।
 
अब प्रश्न उठता है कि हमें कैसे पता चले कि कितना भोजन करना हमारे लिए सुरक्षित है? इस प्रश्न का सीधा उत्तर नहीं दिया जा सकता, क्योंकि हर व्यक्ति की पाचन शक्ति अलग-अलग होती है। इसलिए भेाजन करते हुए जैसे ही हमें ऐसा लगे कि हमारा पेट भर गया है, हमें वहीं रुक जाना चाहिए। इसकी एक पहचान यह है कि भोजन करते हुए जब हमें पहली बार डकार आ जाये, तो हमें समझ लेना चाहिए कि रुक जाने का ठीक यही समय है। यदि पहली डकार के बाद आप खाते चले जायेंगे, तो शीघ्र ही आपको दूसरी डकार आयेगी। यह दूसरी चेतावनी है कि रुक जाइए। उसके बाद भी खाते चले जाना मुसीबत बुलाने के समान है।
 
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि थाली में आपको उतना ही भोजन लेना चाहिए जितना आप सरलता से खा सकें और थाली में जूठन न छोड़नी पड़े। जूठन छोड़ना एक सामाजिक अपराध भी है, भले ही इसके लिए हमारी दंड संहिता में कोई दंड तय नहीं है।
 
अगर परिस्थितिवश या अज्ञानवश किसी समय आप अधिक मात्रा में भोजन कर जाते हैं, तो अगली बार मात्रा उतनी ही कम करके या एक बार का भोजन त्याग कर आप उस भूल का परिमार्जन कर सकते हैं। अपने पाचन तंत्र से अधिक कार्य लेने का दुष्परिणाम आगे चलकर आपको ही भुगतना पड़ता है। इसलिए अपने भोजन की मात्रा और गुणवत्ता पर हमेशा नियंत्रण रखें। यही अच्छे स्वास्थ्य का रहस्य है।
 
विजय कुमार सिंघल
माघ शु. 12, सं 2073 वि. (8 फरवरी, 2017)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com