कविता

यादों का कारवां…

शाम ढ़लते ही
तुम्हारे यादों का कारवां

प्रेम की धुन में झूमता हुआ
मेरे अंतस में समा जाता है

और हौले से एक गुजारिश
उस खामोश अँधेरी रात से

समर्पित अपने लफ्ज़ो के साथ
बस इतनी सी इल्तजा करता

हो जाए आज शोर रुकशद और
सुनाई दे सिर्फ दो धड़कनों की
प्रेमसिक्त आवाज

फैली नींद की गहराईयों में
ख्वाबो के जमीं पे हक हो उसका

मीठे एहसासों के नशे में डूब
जज्बातों के दरिया में बहकर
दो जिस्म एक जान हो जाए

मुक़म्मल हो प्यार अपना
ख्वाबों की हसीन दुनियां में

हकीकत में इश्क़ तो
मर-मर के जिया करते है

सच तो यही है!
ख्वाब में ही प्रेम
जिन्दा रहा करते है।

*बबली सिन्हा

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