स्वास्थ्य

अधोवायु (पादना) का सरल उपचार

पेट के भीतर बनने वाली वायु अर्थात् गैस को अधोवायु कहा जाता है। पेट के भीतर वायु बनना स्वाभाविक क्रिया है और चूँकि यह वायु नीचे की तरफ यानी गुदा से निकलती है इसलिए इसे अधोवायु कहा जाता है। इस प्रकार यह पेट में गैस बनने का एक रूप है।

यदि अधोवायु शब्द करते हुए छूटती है, तो जहाँ अन्य लोगों को अनायास ही हँसी आ जाती है, वहीं इसे छोड़ने वाला बड़ा अटपटा सा अनुभव करने लगता है।अधोवायु का पेट के बाहर निकल जाना बहुत आवश्यक है। इसे पेट के भीतर रोककर रखने से पेटदर्द, सिरदर्द, कब्ज, एसिडिटी, जी मिचलाना, बेचैनी और यौन रोग जैसी व्याधियाँ से हो जाने की पूरी सम्भावना रहती है।

अधोवायु कई प्रकार से आवाज़ें करके हुए या बिना आवाज किये भी निकल सकती है। यह कई बार में थोड़ी-थोड़ी या एक-दो बार में अधिक मात्रा में निकल सकती है। इसकी दुर्गन्ध आस-पास बैठे लोगों को अप्रिय हो सकती है, जिससे पीड़ित को अपमानित भी होना पड़ सकता है। इसलिए अधोवायु का बनना किसी भी तरह उचित नहीं है।

यदि किसी को बहुत अधोवायु बनती है, तो उससे पता चलता है कि उस व्यक्ति की पाचन क्रिया तो सही है, परन्तु मल निष्कासन तंत्र सही कार्य नहीं कर रहा है। इसलिए उसे अपनी मलनिष्कासन क्रिया को सुचारु बनाने में लग जाना चाहिए।

इसका सरल उपाय है अधिक से अधिक जल पीना और पेडू पर ठंडे पानी की पट्टी रखने या पौंछना लगाने के बाद तेज़ी से टहलना। इससे कुछ ही दिनों में मल निष्कासन सही हो जाएगा। इसके साथ हल्का और सात्विक भोजन करना आवश्यक है।

अधोवायु होने पर तात्कालिक उपाय के रूप में दो गिलास सादा या गुनगुना जल पी लीजिए और पाँच-दस मिनट टहलकर शौच विसर्जन के लिए चले जाइए। इससे मलाशय में एकत्र मल निकल जाएगा और अधोवायु निकलना बन्द हो जाएगा।

विजय कुमार सिंघल 
आषाढ़ शु 1, सं 2075 वि. (15 जुलाई, 2018)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com