“कुदरत ने फल उपजाये हैं”
सूरज ने है रूप दिखाया।
गर्मी ने तन-मन झुलसाया।।
धरती जलती तापमान से।
आग बरसती आसमान से।।
लेकिन है भगवान कृपालू।
सबका रखता ध्यान दयालू।।
कुदरत ने फल उपजाये हैं।
जो सबके मन को भाये हैं।।
सूखी नदियों की रेती है।
लेकिन उनमें भी खेती है।।
ककड़ी-खीरा, खरबूजा हैं।
और रसीले तरबूजा हैं।।
रखते सबको सदा निरोगी।
नीम्बू पानी है उपयोगी।।
बेल और शहतूत निराले।
तन को ठण्डक देने वाले।।
नागर हो चाहे देहाती।
लीची सबको बहुत लुभाती।।
सेब-सन्तरा है गुणकारी।
पना आम का है हितकारी।।
मौसम के शीतल फल खाओ।
लू-गर्मी को दूर भगाओ।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)l
प्रिय मयंक भाई जी, हमेशा की तरह बहुत सरल व सुंदर बालगीत के लिए शुक्रिया.