सच्ची रामायण की चाभी ?
‘रामायण’ की कथा या घटना कितने ऐतिहासिक है और कितने सही है ? हमेशा यह बहस के केंद्र में रहा ! इतिहास और कल्पना क्या साथ-साथ चल रही है ? आस्तिकता और नास्तिकता साथ-साथ चल रही होती है !
कई-कई रामायणों से निचोड़ निकालकर महान दार्शनिक व समाजशास्त्री ‘पेरियार’ ई. व्ही. रामास्वामी नायकर ने “सच्ची रामायण” नामक पुस्तक लिखी, जिनकी हिंदी में अनुवाद श्री जुगल किशोर ने किया है । श्रीमान पेरियार ने इसपर आस्था से परे कल्पनाप्रसूत व अघट्य -कथा हेतु अनेकानेक तर्क दिए हैं।
“सच्ची रामायण” को समझने के लिए श्री ललई सिंह यादव की पुस्तक “सच्ची रामायण की चाभी” भी अनोखी पुस्तक है । अगर किसी को ‘सच्ची रामायण’ क्लिष्ट व बंद ताला लग रही है, तो इस ताला की ताली (चाभी) यानी इसे पढ़ने के लिए “सच्ची रामायण की चाभी” भी अनिवार्यरूपेण साथ-साथ पढ़नी चाहिए। प्रत्येक बुद्धिजीवी को ये पुस्तकें पढ़नी ही चाहिए, क्योंकि विचार आस्तिक हो या नास्तिक ‘तर्कशक्ति’ को बढ़ाता है !