कविता

शीर्षक-तजुर्बा

तजुर्बे का कामयाबी में अहम किरदार होता है ।
तजुर्बे से कमाया धन कभी नहीं खोता है ।

तजुर्बा साधारण इंसान को तीरंदाज बनाता है
तजुर्बा पत्थर की प्रतिमा और सुंदर ताज बनाता है।

तजुर्बे से बिगड़ती बात भी बन जाती है।
नहीं तजुर्बा हो तो बनी बात भी बिगड़ जाती है ।

तजुर्बा है जिस मानव में उसने नाम कमाया है।
बिगड़े हालातों में भी कभी नहीं वह घबराया है।

मिट्टी से सोना तजुर्बा ही बनाता है
पर्वत को काटकर ही राह बनाता है

जब प्राणों पर संकट हो ,तजुर्बा ही काम आता है
तजुर्बा खतरनाक हालात से भी हमे बचाता है

तजुर्बा औरत को उपाधि लक्ष्मी की देता है।
तजुर्बा बोली का समझो भाषण देता है नेता

तजुर्बा जिसमें जैसा है नाम भी वैसा ही होता है।
एक तो नभ मे यान उड़ाता एक जमीन पर रोता हैं।

डॉ.सारिका ठाकुर”जागृति”
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ग्वालियर( मध्य प्रदेश)

डॉ. सारिका ठाकुर "जागृति"

ग्वालियर (म.प्र)