कविता

आज का प्यार

करीब इतनेभी न आओ किसी के
छूटे जो साथ तो दर्द बन जाए
प्यार इतना भी न जताओ किसी से
जो टूटे तो खुद टूट जाओ
प्यार पहले सा नहीं रहा अब
जो था लैला मजनू
शीरी फरियाद, रोमियो जूलियट के बीच
वो प्यार वक्त के साथ दफन हुआ
अब प्यार नही
प्यार के नाम तिजारत होती है
प्यार अब लाभ हानि जोड़ देखा जाता है
क्योंकि वोह सुविधाभोगी हो गया है
प्यार अब रूह का नही
देह का हो गया है
इसीलिए तो वासनामय हो गया है
प्यार के पैसे वसूले जाते हैं
आज मेरे तो कल तेरे साथ
सुविधाओं के साथ प्यार बदलते देखा है

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020