गीतिका/ग़ज़ल

*प्रकृति का इशारा है*

प्रकृति का इशारा है।
दर्द जो पसारा है।

दूर तक जिधर देखो,
व्यक्ति बेसहारा है ।

खो गई हंसी लब से ,
ग़म ने हाय मारा है ।

है वबा अजब सी यह,
यह जहान हारा है ।

हर तरफ खमोशी है
मातमी नज़ारा है ।

धुंध ने ढका ऐसा,
खो गया सितारा है ।

वक्त ने बेरहमी से,
कर्ज यह उतारा है ।

काटना शज़र तेरा,
जिसने सबको मारा है।

विष भरी करी नदियाँ,
रो रही त्रिधारा है ।

अब धरा हुई क्रोधित,
दोष सब हमारा है ।

गिनतियाँ हुई उल्टी,
चढ़ा आज पारा है ।

कायनात का गर्जन,
मनुज अब बेचारा है ।

‘मृदुल’ सोंच बदलो जब,
तब मिले किनारा है ।

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016