गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

वो आज भी मुखातिब हैं अजनबी बनकर।
होते हैं रूबरू हमसे जमीं पर उतर कर।।
कह देते हैं दिल की बात शर्माते हुए।
बोलते हैं वो जरा संभल संभल कर।।
सुनकर उनके धड़कते हुए जज़्बात ।
यारों बीती रात करवट बदल बदल कर।।
जुबां से कहते तो कोई बात नहीं थी।
आंखों ने कही हर बात जुबां बनकर।।
सोहरत में है वो आजकल महफ़िल में।
कर लेते हैं आदाब मचल मचल कर।।
रंगत बदल गई है जब से देखा है चांद।
चांदनी उतर आई है चेहरे पर सिमट कर।।
— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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