कविता

फागुन आयो रे

आयो फागुन संग वसंत के
भर के लायो जीवन में उमंग
प्यार रंग से भर लो पिचकारी
महका ने जीवन बगिया सारी
पिया संग नाचूं में भर पिचकारी
लेके हाथ में भांग की प्याला
लगे हरेक रंग हमे क्यों निराला
होली के में दहन की होलिका
प्रहलाद संग रंग खेले खेलैया
कान्हा संग राधा खेले है होली
गोप संग खेले गोपियां भोली
सब प्रेम प्रतीक रंग हमजोली
रंगो संग भूल अहंकार की बोली
मेल मिलाप से झूले प्यार के झूले
फूल पलाश के लाया है फागुन
केसू के फूल के रंग से कान्हा खेले
गाएं सखिरी फागुन आयो रे रंग ले
— जयश्री बिर्मि 

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।